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आवश्यक बातें
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www.youtube.com/watch?v=FU5CYgCTKSIकर्मकांड को जानने से पहले हमें कर्म और कांड को पृथक-पृथक जानना होगा। वैसे तो ये सब इतने व्यापक भाव को समेटे हुए हैं की इनकी परिभाषा करना संभव ही नहीं है।
कर्म क्या है ?
एक जीवित प्राणी जीवन भर जाने-अनजाने जो कुछ भी करता है सब कर्म है। अभी मैं साईट बना रहा हूँ यह भी कर्म है, सांसे ले रहा हूँ यह भी कर्म है। किन्तु इन विषयों के लिए एक अतिरिक्त एक सीमित आयाम में "अध्यात्म संबंधी कर्मो के संपादन मात्र" को कर्मकांड समझ जाता है। लेकिन मैं यह स्पष्ट करना उचित समझूँगा की हमारे (मानव मात्र के) प्रत्येक कार्य चाहे वह सोना-जागना, खाना-पीना, हंसना-रोना, देखना-कहना-सुनना, पढना-लिखना, सोचना-मनन करना, प्रेम करना - द्वेष रखना, ईर्ष्या करना , चुगलखोरी करना, निन्दा करना, बड़ाई करना, बताना-समझाना इत्यादि-इत्यादि; सभी कर्म ही हैं। अब हम यह समझ सकते हैं की कर्म के कई प्रकार होते है। अनेक दृष्टिकोण से कर्म के प्रकार किये जाते हैं !
परिणाम के दृष्टिकोण से सुकर्म और कुकर्म।
कामना के दृश्टिकोण से सकाम और निष्काम।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से कर्म के ३ प्रकार हैं : नित्य, नैमित्तिक और काम्य।
अनेक दृश्टिकोण से और भी कई प्रकार हैं; लेकिन जब भी कर्मकांड शब्द आता है तो उसका तात्पर्य होता है मात्र आध्यात्मिक दृष्टिकोण (नित्य-नैमित्तिक-काम्य) !
काण्ड क्या है ?
कांड के भी कई अर्थ होते हैं। खंड, भाग, घटना आदि।
जैसे रामायण को सात खण्डों या भागो में बांटा गया है और उसे कांड कहा गया है : बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधाकांड, सुन्दरकाण्ड, लंकाकांड, उत्तरकांड।
वैसे तो प्रत्येक घटना ही कांड की श्रेणी में आते हैं मगर जो घटना विशेष होती है और दूर-दूर उसे भी कांड कहते हैं ! जैसे कैराना कांड, मथुराकांड, निर्भयाकांड, अख़्लाककाण्ड इत्यादि। इसमें हम एक समानता देख रहे हैं की सभी बुरी घटना है या आपराधिक। इसके पीछे एक कारण है की पुलिस के यहाँ हर घटना कांड कहलाती है जिसे मिडिया वाले कांड कहकर प्रचारित करते हैं। चूँकि पुलिस के पास सभी बुरी या आपराधिक घटनाएं ही दर्ज होती है इसलिए पुलिस और मिडिया के लिए कांड का तात्पर्य बुरी या आपराधिक घटनाये ही हैं।
नए वर्गीकरण में हम कंप्यूटर के हार्डडिस्क को ३-४ भागों (C-D-E-F-G-H ड्राइवों) में बांटते इन्हें भी एक कांड ही माना जायेगा ; आपके मोबाइल की स्मृति (मेमोरी) में कई फोल्डर होते हैं : म्यूज़िक, वीडियो, पिक्चर इत्यादि। इसे भी एक कांड ही कहा जायेगा।
जब हम आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बात करेंगे तो यहाँ भी कांड का तात्पर्य एक खंड होगा।
अब हम कर्मकांड की चर्चा कर सकते हैं ! अध्यात्म के भी कई भाग किये गए हैं : ज्ञान, भक्ति, कर्म, योग इत्यादि। कर्म भी अध्यात्म का एक भाग है इस कारण एक कांड है।
अर्थात "अध्यात्म के कई भागों में से एक भाग कर्म भी है जिसे कर्मकाण्ड कहते हैं".
कर्म क्या है ?
एक जीवित प्राणी जीवन भर जाने-अनजाने जो कुछ भी करता है सब कर्म है। अभी मैं साईट बना रहा हूँ यह भी कर्म है, सांसे ले रहा हूँ यह भी कर्म है। किन्तु इन विषयों के लिए एक अतिरिक्त एक सीमित आयाम में "अध्यात्म संबंधी कर्मो के संपादन मात्र" को कर्मकांड समझ जाता है। लेकिन मैं यह स्पष्ट करना उचित समझूँगा की हमारे (मानव मात्र के) प्रत्येक कार्य चाहे वह सोना-जागना, खाना-पीना, हंसना-रोना, देखना-कहना-सुनना, पढना-लिखना, सोचना-मनन करना, प्रेम करना - द्वेष रखना, ईर्ष्या करना , चुगलखोरी करना, निन्दा करना, बड़ाई करना, बताना-समझाना इत्यादि-इत्यादि; सभी कर्म ही हैं। अब हम यह समझ सकते हैं की कर्म के कई प्रकार होते है। अनेक दृष्टिकोण से कर्म के प्रकार किये जाते हैं !
परिणाम के दृष्टिकोण से सुकर्म और कुकर्म।
कामना के दृश्टिकोण से सकाम और निष्काम।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से कर्म के ३ प्रकार हैं : नित्य, नैमित्तिक और काम्य।
अनेक दृश्टिकोण से और भी कई प्रकार हैं; लेकिन जब भी कर्मकांड शब्द आता है तो उसका तात्पर्य होता है मात्र आध्यात्मिक दृष्टिकोण (नित्य-नैमित्तिक-काम्य) !
काण्ड क्या है ?
कांड के भी कई अर्थ होते हैं। खंड, भाग, घटना आदि।
जैसे रामायण को सात खण्डों या भागो में बांटा गया है और उसे कांड कहा गया है : बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधाकांड, सुन्दरकाण्ड, लंकाकांड, उत्तरकांड।
वैसे तो प्रत्येक घटना ही कांड की श्रेणी में आते हैं मगर जो घटना विशेष होती है और दूर-दूर उसे भी कांड कहते हैं ! जैसे कैराना कांड, मथुराकांड, निर्भयाकांड, अख़्लाककाण्ड इत्यादि। इसमें हम एक समानता देख रहे हैं की सभी बुरी घटना है या आपराधिक। इसके पीछे एक कारण है की पुलिस के यहाँ हर घटना कांड कहलाती है जिसे मिडिया वाले कांड कहकर प्रचारित करते हैं। चूँकि पुलिस के पास सभी बुरी या आपराधिक घटनाएं ही दर्ज होती है इसलिए पुलिस और मिडिया के लिए कांड का तात्पर्य बुरी या आपराधिक घटनाये ही हैं।
नए वर्गीकरण में हम कंप्यूटर के हार्डडिस्क को ३-४ भागों (C-D-E-F-G-H ड्राइवों) में बांटते इन्हें भी एक कांड ही माना जायेगा ; आपके मोबाइल की स्मृति (मेमोरी) में कई फोल्डर होते हैं : म्यूज़िक, वीडियो, पिक्चर इत्यादि। इसे भी एक कांड ही कहा जायेगा।
जब हम आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बात करेंगे तो यहाँ भी कांड का तात्पर्य एक खंड होगा।
अब हम कर्मकांड की चर्चा कर सकते हैं ! अध्यात्म के भी कई भाग किये गए हैं : ज्ञान, भक्ति, कर्म, योग इत्यादि। कर्म भी अध्यात्म का एक भाग है इस कारण एक कांड है।
अर्थात "अध्यात्म के कई भागों में से एक भाग कर्म भी है जिसे कर्मकाण्ड कहते हैं".
कर्मकांड है क्या ? | |
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File Type: | rtf |
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पूजा-अनुष्ठानकिसी भी धार्मिक अनुष्ठान में पवित्रीकरणादि के पश्चात प्रथमतः स्वस्तिवाचन किया जाता है | भद्रसूक्त का पाठ करना स्वस्तिवाचन कहलाता है | भद्रसूक्त उन मंत्रों का समूह है जिसमें हम कल्याणकामना करते हैं | हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर ईष्ट का ध्यान करते हुए स्वस्तिवाचन करना चाहिए :- हरिः ॐ आ नो᳚ भ॒द्राः क्रत॑वो यन्तु वि॒श्वतोऽद॑ब्धासो॒ अप॑रीतासऽउ॒द्भिदः॑ । दे॒वा नो॒ यथा॒ सद॒मिद् वृ॒धे अस॒न्नप्रा᳚युवो रक्षि॒तारो᳚ दि॒वेदि॑वे ॥ दे॒वानां᳚म्भ॒द्रा सु॑म॒तिरृ॑जूय॒तां दे॒वानां᳚ ᳪ रा॒तिर॒भि नो॒ निव॑र्तताम् । दे॒वानां᳚ ᳪ स॒ख्यमुप॑ सेदिमा व॒यं दे॒वा न॒ आयुः॒ प्रति॑रन्तु जी॒वसे॑ ॥ तान्पूर्व॑या नि॒विदा᳚ हूमहे व॒यं भगं᳚म्मि॒त्रमदि॑तिं॒ दक्ष॑म॒स्रिधम्᳚ । अ॒र्य॒मणं॒ वरु॑णं॒ ᳪ सोम॑म॒श्विना॒ सर॑स्वती नः सु॒भगा॒ मय॑स्करत् ॥ तन्नो॒ वातो᳚ मयो॒भुवा᳚तु भेष॒जं तन्मा॒ता पृ॑थि॒वी तत्पि॒ता द्यौः । तद्ग्रावा᳚णः सोम॒सुतो᳚ मयो॒भुव॒स्तद॑श्विना शृणुतं धिष्ण्या यु॒वम् ॥ तमीशा᳚नं॒ जग॑तस्त॒स्थुष॒स्पतिं᳚ धियंजि॒न्वमव॑से हूमहे व॒यम् । पू॒षा नो॒ यथा॒ वेद॑सा॒मस॑द्वृ॒धे र॑क्षि॒ता पा॒युरद॑ब्धः स्व॒स्तये᳚ ॥ स्व॒स्ति न॒ इन्द्रो᳚ वृ॒द्धश्र॑वाः स्व॒स्ति नः॑ पू॒षा वि॒श्ववे᳚दाः । स्व॒स्ति न॒स्तार्क्ष्यो॒ अरि॑ष्टनेमिः स्व॒स्ति नो॒ बृह॒स्पति॑र्दधातु ॥ पृष॑दश्वा म॒रुतः॒ पृश्नि॑मातरः शुभं॒यावा᳚नो वि॒दथे᳚षु॒ जग्म॑यः । अ॒ग्नि॒जि॒ह्वा मन॑वः॒ सूर॑चक्षसो॒ विश्वे᳚ नो दे॒वा अव॒सा ग॑मन्नि॒ह ॥ भ॒द्रं कर्णे᳚भिः शृणुयाम देवा भ॒द्रं प॑श्येमा॒क्षभि॑र्यजत्राः । स्थि॒रैरङ्गै᳚स्तुष्टु॒वा ᳪ स॑स्त॒नूभि॒र्व्य॑शेमहि दे॒वहि॑तं॒ यदायुः॑ ॥ श॒तमिन्नु श॒रदो॒ अन्ति॑ देवा॒ यत्रा᳚ नश्च॒क्रा ज॒रसं᳚न्त॒नूना᳚म् । पु॒त्रासो॒ यत्र॑ पि॒तरो॒ भव᳚न्ति॒ मा नो᳚ म॒ध्या री᳚रिष॒तायु॒र्गन्तोः᳚ ॥ अदि॑ति॒र्द्यौरदि॑तिर॒न्तरि॑क्ष॒मदि॑तिर्मा॒ता स पि॒ता स पु॒त्रः । विश्वे᳚ दे॒वा अदि॑तिः॒ पञ्च॒ जना॒ अदि॑तिर्जा॒तमदि॑ति॒र्जनि॑त्वम् ॥ द्यौः शान्ति॑र॒न्तरि॑क्ष॒ ᳪ शान्तिः॑ पृथि॒वी शान्ति॒रापः॒ शान्ति॒रोषध॑यः॒ शान्तिः॑। वन॒स्पत॑यः॒ शान्ति॒र्विश्वे॑ दे॒वाः शान्ति॒र्ब्रह्म॒ शान्तिः॒ सर्व॒ ᳪ शान्तिः॒ शान्ति॑रे॒व शान्तिः॒ सा मा॒ शान्ति॑रेधि ॥ यतो यत: समीहसे ततो नो अभयं कुरु । शं न: कुरु प्रजाभ्यो भयं न: पशुभ्य: ।। सुशान्तिर्भवतु । श्रीमन्महागणाधिपतये नमः । लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः । उमा महेश्वराभ्यां नमः । वाणीहिरण्य-गर्भाभ्यां नमः । शचीपुरन्दराभ्यां नमः । मातृपितृचरणकमलेभ्यो नमः । इष्टदेवताभ्यो नमः । कुलदेवताभ्यो नमः । ग्रामदेवताभ्यो नमः । वास्तुदेवताभ्यो नमः । स्थानदेवताभ्यो नमः । सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः । सर्वाभ्यो देवीभ्यो नमः। सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः । ॐ शान्तिः॒ शान्तिः॒ शान्तिः॑ ॥ सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः। लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ।। धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः। द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ।। विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा । संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ।। शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् । प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ।। अभीप्सितार्थसिद्ध्यर्थं पूजितो यः सुराऽसुरैः । सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नमः ।। सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बकेगौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ।। सर्वदा सर्वकार्येषु नास्ति तेषाममङ्गलम् । येषां हृदिस्थो भगवान् मङ्गलायतनो हरिः।। तदेव लग्नं सुदिनं तदेव ताराबलं चन्द्रबलं तदेव । विद्याबलं दैवबलं तदेव लक्ष्मीपतेर्तेऽङ्घ्रियुगं स्मरामि ।। लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः। येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः।। यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ।। अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते । तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ।। स्मृतेः सकलकल्याणं भाजनं यत्र जायते । पुरुषं तमजं नित्यं व्रजामि शरणं हरिम् ।। सर्वेष्वारम्भकार्येषु त्रयस्त्रिभुवनेश्वराः । देवा दिशन्तु नः सिद्धिं ब्रह्मेशानजनार्दनाः ।। विश्वेशं माधवं ढुंढिं दण्डपाणिं च भैरवम् । वन्दे काशींगुहांगङ्गां भवानीमणिकर्णिकाम्।। विनायकं गुरुं भानुं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरान् | सरस्वतीं प्रणम्यादौ सर्वकामार्थ सिद्धये ।। वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ । निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ।। ॥ ॐ शान्तिः॒ शान्तिः॒ शान्तिः॑ ॥ सुशान्तिर्भवतु ॥ सर्वारिष्टशान्तिर्भवतु ॥ यूट्यूब पर देखें |
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